संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत रत्न से सम्मानित की जीवन गाथा।
२. शिक्षा
फरवरी 1948 को अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया और जिसे 26 जनबरी 1949 को लागू किया गया। 1951 में डॉ. अम्बेडकर ने कानून मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया| हिन्दी सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं में डॉ बी आर अम्बेडकर के कामों के व्याख्यान को उपलब्ध करा रहें हैं। डॉ अंबेडकर के जीवन के मिशन के साथ ही विभिन्न सम्मेलनों, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों, व्याख्यान, सेमिनार, संगोष्ठी और मेलों का आयोजन। समाज के कमजोर वर्ग के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सामाजिक परिवर्तन के लिए डॉ अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देना।
भारतीय संविधान के निर्माता डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे।
डॉक्टर भीमराव राम जी अंबेडकर जन्म:- 14 अप्रैल 1891; मृत्यु:- 6 दिसम्बर 1956 (उम्र 65)
बाबा साहेब का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। अपनी जाति के कारण बालक भीम को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। विद्यालयी पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद छात्र भीमराव को छुआछूत के कारण अनेका प्रकार की कठनाइयों का सामना करना पड़ता था।
१. जीवन परिचय
भारत को संविधान देने वाले महान नेता डॉ. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू सैनिक छावनी में हुआ था। डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता-पिता की चौदहवीं एवं अंतिम संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे। उनका परिवार कबीर पंथ को मानने वाला मराठी मूल्य था। वे वर्तमान में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गांव के निवासी थे भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे।
२. शिक्षा
बचपन में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था. अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे। यहां काम करते हुये वे सुबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल में पढने और कड़ी मेहनत करने के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया।
प्राथमिक शिक्षा
आंबेडकर ने सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में 7 नवंबर 1900 को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं।
माध्यमिक शिक्षा
1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे।
1912 में, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। सामाजिक समस्याओंं के कारण उन्होंने काम छोड़ दिया। और वह बैरिस्टर की पढ़ाई केे लिए लंदन चले गए।
३.विवाह
बाबा साहेब का पहला विवाह 15 वर्ष की उम्र में सन (1906) रमाबाई से हुई थी। शादी के बाद आंबेडकर की पढ़ाई जारी रही। बैरिस्टरी की पढाई करने के लिए वह इंग्लैंड गए। लौटकर दलितों के उत्थान में जोरशोर से जुड़ गए। पहली पत्नी से पांच बच्चे हुए। केवल बड़े बेटे य़शवंतराव ही लंबे समय जीवित रहे। बच्चे ज्यादा ज्यादा पढ़ भी नहीं सके थे। यशवंतराव भी केवल मैट्रिक तक ही शिक्षा पा सके थे। हालांकि बाद में यशवंत ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया बनाई। विधायक भी बने। बाबा साहेब काफी व्यस्त रहते थे। पारिवारिक जिम्मेदारियों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे। लंबी बीमारी के बाद रमाबाई का 1935 में निधन हो गया। अगले 13 सालों तक बाबा साहेब ने विवाह के बारे में सोचा भी नहीं।
ईलाज के दौरान डॉ. सविता के करीब आए और शादी
1940 के दशक के आखिर में वह जब भारतीय संविधान को बनाने में व्यस्त थे तभी स्वास्थ्य की जटिलताएं उभरनी शुरू हुईं। नींद नहीं आती थी। पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द रहने लगा। इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं किसी हद तक राहत दे पाती थीं। इलाज के लिए वह बंबई गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें अब ऐसे साथी की भी जरूरत है, जो न केवल पाक कला में प्रवीण हो बल्कि मेडिकल ज्ञान वाला भी हो, ताकि उनकी केयर कर सके।
डॉक्टर सविता बेहद समर्पित तरीके से इलाज कर रही थीं लिहाजा वो उनके करीब भी आ गए थे। नजदीकियां कुछ इस तरह बढ़ीं कि उन्होंने सविता के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। वो जब मान गईं तो 1948 को दिल्ली स्थित आंबेडकर के आवास पर दोनों की शादी हुई। डॉक्टर सविता एक ब्राह्मण समाज से आती थी जिसका ब्राह्मणों ने विरोध किया था। विवादों को किनारे रखते हुए इसमें कोई शक नहीं कि डॉक्टर सविता बाई ने बाबा साहेब का पूरी निष्ठा से मरते दम तक ख्याल रखा। यहां तक बाबासाहेब खुद उनके समर्पण एवं सेवा की तारीफ करते थे।
हालांकि निधन के बाद आंबेडकर के बेटों और करीबियों ने सविता माई पर उनका ध्यान नहीं रखने का आरोप भी लगाया। उन्हें आंबेडकर आंदोलन से अलग कर दिया गया।
४.राजनीतिक जीवन
४.राजनीतिक जीवन
31 जनवरी 1920 को एक साप्ताहिक अख़बार “मूकनायक” शुरू किया। 1924 में बाबासाहेब ने दलितों को समाज में अन्य वर्गों के बराबर स्थान दिलाने के लिए बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। 1932 को गांधी जी और डॉ. अम्बेडकर के बीच एक संधि हुई जो ‘पूना संधि’ के नाम से जानी जाती है। अगस्त 1936 में “स्वतंत्र लेबर पार्टी ‘की स्थापना की। 1937 में डॉ. अम्बेडकर ने कोंकण क्षेत्र में पट्टेदारी को ख़त्म करने के लिए विधेयक पास करवाया| भारत के आज़ाद होने पर डॉ. अम्बेडकर को संविधान की रचना का काम सौंपा गया|
फरवरी 1948 को अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया और जिसे 26 जनबरी 1949 को लागू किया गया। 1951 में डॉ. अम्बेडकर ने कानून मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया| हिन्दी सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं में डॉ बी आर अम्बेडकर के कामों के व्याख्यान को उपलब्ध करा रहें हैं। डॉ अंबेडकर के जीवन के मिशन के साथ ही विभिन्न सम्मेलनों, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों, व्याख्यान, सेमिनार, संगोष्ठी और मेलों का आयोजन। समाज के कमजोर वर्ग के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सामाजिक परिवर्तन के लिए डॉ अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देना।
हर साल डॉ अम्बेडकर की 14 अप्रैल को जन्मोत्सव और 6 दिसंबर पर पुण्यतिथि का आयोजन। अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के मेधावी छात्रों के बीच में पुरस्कार वितरित करने के लिए डॉ अम्बेडकर नेशनल मेरिट अवार्ड योजनाएं शुरू करना। हिन्दी भाषा में सामाजिक न्याय संदेश की एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन। अनुसूचित जाति से संबंधित हिंसा के पीड़ितों के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय राहत देना।
५.धर्म परिवर्तन
डॉ अम्बेडकर जी ने वर्णव्यवस्था और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ हिन्दू समाज में संघर्ष करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हिन्दूधर्म को सुधारा नहीं जा सकता, उसे छोड़ा जा सकता है। अत: 1956 में उन्होंने बौद्धधर्म स्वीकार किया और उनके अनुसार बौद्ध धर्म ही अधिक लोकतान्त्रिक, नैतिक एवं समतावादी है। जिस वजह से लोगों ने भी बौद्ध धर्म को स्वीकारा करीब 2 से 3 लाख लोगों ने एक साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ली। बाबा साहब का कहना था।
"मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं। इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती है। यदि एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है, उसका धर्म कोई होना चाहिए, तो वह धर्म केवल बौद्ध धर्म ही हो सकता है। सभी धर्मों के घनिष्ठ अध्ययन के पच्चीस वर्षों के बाद यह दृढ़ विश्वास मेरे बीच बढ़ गया है।"
६. निधन
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने 6 दिसम्बर 1956 को अपने पार्थिव शरीर को इस संसार में छोड़ दिया. इस दिन को हमार लोग डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के महापरिनिर्वाण दिवस रूप में मनाया जाता है और उनके चिंतन पर मनन किया जाता है. मृत्यु : 6 दिसंबर 1956 को लगभग 63 वर्ष 6 माह की उम्र में उनका देहांत हो गया। दिल्ली से विशेष विमान द्वारा उनका पार्थिव मुंबई में उनके घर राजगृह में लाया गया। 7 दिसंबर को मुंबई में दादर चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में अंतिम संस्कार किया गया जिसमें उनके लाखों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। उनके अंतिम संस्कार के समय उनके पार्थिव को साक्षी मानकर 10,00,000, लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली क्योकि आम्बेडकर ने 16 दिसंबर 1956 को मुंबई में एक बौद्ध धर्मांतरण कार्यक्रम आयोजित किया था।
७. विचार
- जीवन लम्बा होने की बजाय महान होना चाहिए।
- पति-पत्नी के बीच का सम्बन्ध घनिष्ट मित्रों के सम्बन्ध के सामान होना चाहिए।
- हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
- मैं किसी समुदाय की प्रगति, महिलाओं ने जो प्रगति हांसिल की है उससे मापता हूँ।
- एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्त नहीं है। जिसकी आवश्यकता है वो है न्याय एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था।
- लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा; सामजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगो के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
- हमारे पास यह स्वतंत्रता किस लिए है ? हमारे पास ये स्वत्नत्रता इसलिए है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था, जो असमानता, भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी है, जो हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है को सुधार सकें।
- सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है वहां अपनी पहचान नहीं खोता। इंसान का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।
- आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।
- राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को ख़ारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं ।
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